खुहरि जोइर जोइर आगि पजारलौं
पुषमासके ठन्ढा बेजोडके बहिना
आगा सेकलौं पाछा ठन्डा
देह छिरयाओल जहिनातहिना
शितलहरि देखैत हाथपैर जैमगेल
सर्दि सँ माथा भइरगेल
आगि ताप बेर धुवाँ जे देखलौं
पुरान बात मन पइरगेल
बाटघाट जे करे लघुशंका
धुवाँ ओकरे दिश सन्हियाय
जहने लागल आँइखमे धुवाँ
झट उठि गेलौं पराय
ठेहुनके दर्द उखरल
मोटका कपरा भइर घर पसरल
जाजिम , सिरक गेल ठहैइर
खोकैत बुढसब कहैर ,कहैर
सोइरी घर ठिठुरैत ललकोरी
भिजल सल्गि ,भरल डोरी
कपरा सेकैत दिन बित जाय
जँ उगत रौउदा ,जाढ जायत पराय
लगचियाओल तिलसंक्राति
रौउद बिन तिल धोब कोना
पुष मास दिन ,फुस सँ बितल
भैरदेह कपडा करेजमे सटल
रउद जँ हेत ,कनिको करगर
सबहक मन हर्षित हेत फरहर
कोना बितायब इ महिना
पुषके ठन्ढा बेजोडके बहिना
जय माता जानकी जी, जय मिथिला ,जय मैथिली ।
रचियता : ज्योति झा
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